मन्जिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह “दिनकर”
श्री रामधारी सिंह दिनकर जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे जिन्होंने अनेक ऐसी रचनाएं लिखी जिनसे दिनकर जी को ख्याति प्राप्त हुयी| दिनकर द्वारा लिखी गयी कविता – मन्जिल दूर नहीं है (Manjhil Dur Nahi hai) किसी भी निराश व्यक्ति में साहस का संचार कर सकती है और उत्साह के अंकुर उसके ह्रदय में जागृत कर सकती है | मेरा व्यक्तिगत रूप से यह मानना है जब भी आप उदासी और निराशा की आगोस में खुद को खोता हुआ पायें तब इस कविता अर्थात मन्जिल दूर नहीं है अवश्य पढ़ें |
मन्जिल दूर नहीं है – Manjhil Dur Nahi hai
“यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है,
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है”
“चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से
चमक रहे पीछे मुड देखो चरण-चिनह जगमग से
शुरू हुई आराध्य भूमि यह क्लांत नहीं रे राही;
और नहीं तो पाँव लगे हैं क्यों पड़ने डगमग से
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है”
“अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का।
एक खेप है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ;
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है”
“दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,
अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।“
———— रामधारी सिंह “दिनकर”
Shandaar👌