यौवन का पागलपन – माखनलाल चतुर्वेदी
यौवन का पागलपन हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।सपना है, जादू है, छल है ऐसापानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।यह गुदगुदी, यही बीमारी,मन हुलसावे,
यौवन का पागलपन हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।सपना है, जादू है, छल है ऐसापानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।यह गुदगुदी, यही बीमारी,मन हुलसावे,
….दीप से दीप जले…. सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलेंकर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें। लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने मेंलक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने मेंलक्ष्मी का आगमन अँधेरी
बचपन में अनेक कविताओं का अध्ययन और वाचन किया मैंने परन्तु श्री माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता “पुष्प की अभिलाषा” मेरी सबसे प्रिये कविताओं में से एक रही है |
हो गया पूर्ण अज्ञात वास,पाडंव लौटे वन से सहास,पावक में कनक-सदृश तप कर,वीरत्व लिए कुछ और प्रखर,नस-नस में तेज-प्रवाह लिये,कुछ और नया उत्साह लिये।सच है, विपत्ति जब आती है,कायर को
मातृ मूर्ति क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार,उसकी प्रभा देख कर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार ।। अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल,पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नुसुता
है प्रीत जहाँ की रीत सदा जब ज़ीरो दिया मेरे भारत नेभारत ने मेरे भारत नेदुनिया को तब गिनती आईतारों की भाषा भारत नेदुनिया को पहले सिखलाई देता ना दशमलव
कौन सिखाता है चिड़ियों को चीं-चीं, चीं-चीं करना?कौन सिखाता फुदक-फुदक कर उनको चलना फिरना? कौन सिखाता फुर्र से उड़ना दाने चुग-चुग खाना?कौन सिखाता तिनके ला-ला कर घोंसले बनाना? कौन सिखाता
नमस्कार ! thehindigiri.com से जुड़े हुए सम्मानित सभी सदस्यों एवम् भारत वर्ष के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस (Republic day) की हार्दिक शुभकामनाएं | दोस्तों यह पोस्ट बहुत
कविवर सूरदास के प्रमुख पद आपको इस इस ब्लॉग में पढ़ने को मिलेगा | तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी बिनु प्रान॥जैसे नाद-मगन बन सारंग, बधै
क्या कहते हैं कि समय सबको यथार्थ की दिशा का दर्शन करा देता है | दुष्यंत कुमार जी की कविता व गज़ल में एक अलग छवि देखने को मिलती है