जीवन नहीं मरा करता है

जीवन नहीं मरा करता है, गीत ऋषि श्री गोपालदास नीरज

मेरे शब्दों के दुनिया के दोस्त, आपका पुनः स्वागत है मेरे ब्लॉग के एक नए लेख में, जो की आधारित है नीरज जी की कविता जीवन नहीं मरा करता हैं|
मेरी उँगलियों में उत्सुकता और शीघ्रता तथा मन में उत्साह का आगमन हो चुका है पर विचारों में गहराई तथा ठहराव प्रतीत हो रहा है |
दोस्तों मेरा आज का पूरा दिन यादों के हवाले रहा है| मेरी स्मृतियों में मेरे अपनों की यादें और हाल ही में बीती घटना का चित्रण रहा है …….खैर दिन तो सुखद नहीं बीता पर शाम सुहानी हो गई क्योंकि इन्ही यादों की गलियों से शाम में गीत ऋषि श्री गोपालदास नीरज भी गुजरे |
वैसे तो नीरज किसी के परिचय के मोहताज नहीं है| फिरभी नीरज ने हिन्दी सिनेमा की अनेक सुपरहिट फिल्मो में गीत लिखे तथा कविता को मुहावरे में परिवर्तित कर गाँव, गली, मोहल्ले में पहुचा दिया | श्री नीरज के बारे में, मैं जितना भी लिखूँ कम है|
अब आते हैं अपने टाइटल पर “जीवन नहीं मरा करता है” इस कविता की कुछ पन्क्तियाँ लिख रहा हूँ|


छिप छिप अश्रु बहाने वालों , मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है नयन सेज पर,
सोया हुआ आँख का पानी ,
और टूटना है उसका ज्यों ,
जागे कच्ची नींद जवानी ,
गीली उमर बनाने वालों , दुबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |


जीवन में उतार चढ़ाव का क्रम निरंतर चलता रहता है पर प्रसन्नता के क्रम को कभी भी नहीं रोकना चाहिय..

आज मेरे अतीत ने मुझे झझकोर कर रख दिया.
वो दोस्त भी याद आये जिन्होंने मुझे बहुत स्नेह दिया और वो दोस्त भी याद आये जिन्होंने अपनी आवश्यकता अनुसार मुझसे मित्रता रखी|
व्यक्तिगत जीवन में मैंने अनुभव किया कि कुछ भी खो देना सबकुछ खोना नहीं है और कुछ भी पा लेना सबकुछ पाना नहीं है |
अर्थात सन्तुलन की स्थिति बनायें रखे तथा जीवन फकीराना जीते रहे|


श्री नीरज जी की पंक्तियों से सीखना चाहिय “कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है”
आज का दिन कैसा रहा इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा पर इस लेख को लिखने में मुझे जिस आनंद की अनुभूति हुई उसे मै ही समझ सकता हूँ|
मेरे शब्दों की दुनिया के दोस्त अंत में मै यही कहना चाहूँगा कि स्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल उन्हें बदलने के लिया प्रतीक्षा नही प्रयास की आवश्यकता है|
हबीब अमरोहवी कहते हैं ……
बेहतर दिनों की आस लगाते हुए ‘हबीब’,
हम बेहतरीन दिन भी गंवाते चले गए|
अतः
“प्रतीक्षा नहीं प्रयास कीजिए “
इति
@ ✍मोहन अबोध #Mohanabodh

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