वर दे वीणावादिनी वर दे – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखित यह रचना “वर दे वीणावादिनी वर दे” हम सब को बचपन में पढ़ाई गयी तो जो आज तक हम सबको कंठस्थ है | इस कविता में निराला जी माँ सरस्वती से वरदान मांग रहें हैं | माँ सरस्वती से निराला जी की या अभिलाषा है कि नए भारत में सबकुछ अच्छा कर दे, कष्टकारी अंधकार को नष्ट करके प्रकाश की ज्योति जला दे जिससे सारा भारत जगमगा उठे……
इस कविता को इस ब्लॉग में प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि आप भी पढ़ें और अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों तक साझा करें …
“….. वर दे, वीणावादिनि वर दे! …..”
वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव,
भारत में भर दे!
काट अंध-उर के बंधन-स्तर,
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर,
जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव,
नव नभ के नव विहग-वृंद को,
नव पर, नव स्वर दे!
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”