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क्या खूब लगती हो, बड़ी सुंदर दिखती हो| एक ऐसा गीत जिसे हर प्रेमिका अपने प्रेमी से सुनना चाहती है।

नमस्कार ! मेरे शब्दों के दुनियां के दोस्त, कैसे हैं आप सब? आशा करता हूँ आप आनंदित होंगे।पुनः उपस्थित हूँ आप लोगों के समक्ष एक नए लेख के साथ।क्या खूब लगती हो, बड़ी सुंदर दिखती हो

आज के लेख का विषय थोड़ा सा अलग है क्योंकि मैं आज बात करूंगा एक गीत के बारे में, जिसे हर प्रेमिका अपने प्रेमी से सुनना चाहती है।जिस गीत को आवाज़ दी है, गायक मुकेश और गायिका कंचन ने तथा इस गीत के लिए मंत्रमुग्ध कर देने वाली संगीत की उपज हुई है, कल्याणजी और आनंदजी की जोड़ी से।
इस गीत को, मैं इतनी तवज्जों क्यों दे रहा हूँ ….? इस बात को बताने से पहले आपको बता दूँ।इस गीत को फिल्माया गया था, अभिनेता फ़िरोज खान के निर्देशन में बनी फिल्म धर्मात्मा के लिए।
जिन लोगों ने यह फ़िल्म देखी है उनको तो पता होगा पर जिन्होंने नही देखी हैं उनके जानकारी के लिए एक बात और,  इस फ़िल्म में फ़िरोज खान ने अभिनय भी किया था। 
इस फ़िल्म में बहुत से अभिनेता और अभिनेत्रियों ने अभिनय किया है। सबके बारे में बात नही करूँगा पर इस गीत में नायिका के रूप में अभिनय किया है अभिनेत्री हेमामालिनी ने।
इतनी बातें करने के बाद, मेरी अमलतास जैसी उंगलियां मुझसे इशारा कर रही है। शब्दों को अमलतास के फूल का रस मानो और लिखना प्रारंभ कर दो| अमलतास के पत्तों जैसे दिलों पर उस गीत की बातें लिखो, जिसे हर प्रेमिका सुनना चाहती है अपने प्रेमी से, और प्रश्न करना चाहती है।
लेख को गति देने से पहले मैं एक जानकारी और देना चाहूंगा कि इस गीत को लिखा है श्री श्यामलाल बाबू राय जी ने। जिन्हें प्रचलित नाम “इंदीवर” से हम सभी जानते हैं। फिलहाल जनाब इंदीवर साहब पर किसी दिन विस्तार से चर्चा करूँगा।तो साहिबान, क्या खूब लगती हो, बड़ी सुंदर दिखती हो।यह गीत….सच बोलें तो दो या फिर कुछ यों भी कह सकते हैं कि यह ढाई अंतरा का गीत है।अगर बात करें मुखड़े की तो कवि ने प्रेमिका के सौंदर्य में किसी भी प्रकार की उपमा का प्रयोग नहीं किया है। फिरभी प्रेम का सौंदर्य और प्रेमिका की उत्सुकता देखिए वह बार-बार यही कह रही है फिर से कहो कहते रहो अच्छा लगता है” भावनाओं की स्थिति देखिए और समझिये, यह भी बोल देती है जीवन का हर सपना, अब सच्चा लगता है
मेरे शब्दों के दुनिया के दोस्त, गीत का अगला अंतरा शुरू होता है प्रेमिका के प्रश्नों से…..अगर वीडियो देखें तो नायिका, नायक को चकमा देकर कार की चाभी निकाल लेती है और संदेह भरे लहजे में कहती है…तारीफ करोगे कबतक?गीतकार की हाजिर जबाबी तो देखिए कितना यथार्थ उत्तर देता है नायक “सीने में साँस रहेगी जबतक”।यह उत्तर भी सुनकर नायिका का मन नही भरता है अपनी प्रेम की वास्तविकता जानने के लिए प्रश्न करती है….कब तक मैं रहूँगी मन में“?और नायक का उत्तर होता है सूरज होगा जबतक नील गगन में

खूबसूरती इस बात में नही है कि प्रश्न किस स्तर का पूछा जा रहा है बल्कि इस बात में है कि उत्तर कितना सटीक दिया जा रहा है।

अगला अंतरा शुरू होने से पहले गीत का मुखड़ा नायिका पुनः दोहराती है …फिर से कहो, कहते रहो…….”

अब बारी है अंतिम अन्तरा की, जिसमें …. प्रश्नों के घेरे में होती है नायिका..कार धीरे – धीरे गति पकड़ती है और पहाड़ियों के मध्य चलते चलते एक स्थान पर रुकती है।नायक अपने प्रेम की निकटता को समझने के लिए प्रश्न करता है…खुश हो मुझे तुम पाकर….?नायिका का उत्तर आकांक्षाओं की सारी सीमा पार कर देता है। वह कहती है “प्यासे दिल को आज मिला है सागर
नायिका के हृदय की स्थिति और अभिलाषाओं को समझने की कोशिश इस प्रश्न से करता है….क्या दिल में है और तम्मना…?पुनः सरल पर पूर्ण उत्तर नायिका देती है।हर जीवन में तुम मेरे ही बनना..
फिर जानब उन वादियों में एक ही बात दोहराई जाती है , दोनों के द्वारा….फिरसे कहो कहते रहो,अच्छा लगता है…….
यहीं पर इस गीत का अंत होता है यह गीत अमर हो जाता है।
और यह गीत बन जाता है “एक ऐसा गीत जिसे हर प्रेमिका अपने प्रेमी से सुनना चाहती है।”
मेरे शब्दों की दुनिया के दोस्त आज इतना ही फिर मिलेंगे एक न एक लेख के साथ….घर पर रहें, सुरक्षित रहें।इति✍️ मोहन अबोध #Mohanabodh

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