Maun Nimantran

मौन निमन्त्रण – सुमित्रानंदन पंत

मौन निमन्त्रण ( Maun Nimantran) सुमित्रानंदन पंत

कवि सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant ) जी को “प्रकृति के सुकुमार कवि” के रूप में भी जाना जाता है | प्रत्येक कवि लेखन विधा, विषय व भाव का चयन अपनी रूचि के अनुरूप करता है | प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानंदन पन्त जी ने कविता के लिए जो विषय चुना वह भारतीय प्रकृति है| पंत जी की कविता निमंत्रण देता मुझको मौन ( Nimantran Deta Mujhko maun )  बहुत ही चर्चित और लोकप्रिय कविता है|

“स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार

चकित रहता शिशु सा नादान ,

विश्व के पलकों पर सुकुमार

विचरते हैं जब स्वप्न अजान,

न जाने नक्षत्रों से कौन

निमंत्रण देता मुझको मौन !”

“सघन मेघों का भीमाकाश

गरजता है जब तमसाकार,

दीर्घ भरता समीर निःश्वास,

प्रखर झरती जब पावस-धार ;

न जाने ,तपक तड़ित में कौन

मुझे इंगित करता तब मौन !”

“देख वसुधा का यौवन भार

गूंज उठता है जब मधुमास,

विधुर उर के-से मृदु उद्गार

कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्वास,

न जाने, सौरभ के मिस कौन

संदेशा मुझे भेजता मौन !”

“क्षुब्ध जल शिखरों को जब बात

सिंधु में मथकर फेनाकार ,

बुलबुलों का व्याकुल संसार

बना,बिथुरा देती अज्ञात ,

उठा तब लहरों से कर कौन

न जाने, मुझे बुलाता कौन !”

“स्वर्ण,सुख,श्री सौरभ में भोर

विश्व को देती है जब बोर

विहग कुल की कल-कंठ हिलोर

मिला देती भू नभ के छोर ;

न जाने, अलस पलक-दल कौन

खोल देता तब मेरे मौन  !”

“तुमुल तम में जब एकाकार

ऊँघता एक साथ संसार ,

भीरु झींगुर-कुल की झंकार

कँपा देती निद्रा के तार

न जाने, खद्योतों से कौन

मुझे पथ दिखलाता तब मौन !”

“कनक छाया में जबकि सकल

खोलती कलिका उर के द्वार

सुरभि पीड़ित मधुपों के बाल

तड़प, बन जाते हैं गुंजार;

न जाने, ढुलक ओस में कौन

खींच लेता मेरे दृग मौन !”

“बिछा कार्यों का गुरुतर भार

दिवस को दे सुवर्ण अवसान ,

शून्य शय्या में श्रमित अपार,

जुड़ाता जब मैं आकुल प्राण ;

न जाने, मुझे स्वप्न में कौन

फिराता छाया-जग में मौन !”

“न जाने कौन अये द्युतिमान !

जान मुझको अबोध, अज्ञान,

सुझाते हों तुम पथ अजान

फूँक देते छिद्रों में गान ;

अहे सुख-दुःख के सहचर मौन !

नहीं कह सकता तुम हो कौन !”

—कवि सुमित्रानंदन पंत

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