सुमित्रानंदन

पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस ­- सुमित्रानंदन पंत

जैस कि सुमित्रानंदन पंत जी के अभिरुचि से आप सभी परिचित हैं पंत जी को प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है, दरअसल में पंत जी ने अपनी लेखनी के लिए जो भी विषय चुना वह प्रकृति से ही सम्बंधित रहा | आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पन्त जी ने “पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस ­– कविता” लिखी तो देश की मनोदसा और चेतना से परिचय कराने के लिए परन्तु इस कविता में भी प्राकृतिक स्थितियों का बहुतायत में वर्णन मिलता है|

“चिर प्रणम्य यह पुष्य अहन, जय गाओ सुरगण,

आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन !

नव भारत, फिर चीर युगों का तिमिर-आवरण,

तरुण अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन !

सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,

आज खुले भारत के संग भू के जड़-बंधन !”

“शान्त हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण,

मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण !

आम्र-मौर लाओ हे ,कदली स्तम्भ बनाओ,

पावन गंगा जल भर के बंदनवार बँधाओ ,

जय भारत गाओ, स्वतन्त्र भारत गाओ !

उन्नत लगता चन्द्र कला स्मित आज हिमाँचल,

चिर समाधि से जाग उठे हों शम्भु तपोज्वल !

लहर-लहर पर इन्द्रधनुष ध्वज फहरा चंचल

जय निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल !”

“धन्य आज का मुक्ति-दिवस गाओ जन-मंगल,

भारत लक्ष्मी से शोभित फिर भारत शतदल !

तुमुल जयध्वनि करो महात्मा गान्धी की जय,

नव भारत के सुज्ञ सारथी वह नि:संशय !

राष्ट्र-नायकों का हे, पुन: करो अभिवादन,

जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन !

स्वर्ण-शस्य बाँधो भू वेणी में युवती जन,

बनो वज्र प्राचीर राष्ट्र की, वीर युवगण!

लोह-संगठित बने लोक भारत का जीवन,

हों शिक्षित सम्पन्न क्षुधातुर नग्न-भग्न जन!

मुक्ति नहीं पलती दृग-जल से हो अभिसिंचित,

संयम तप के रक्त-स्वेद से होती पोषित!

मुक्ति माँगती कर्म वचन मन प्राण समर्पण,

वृद्ध राष्ट्र को, वीर युवकगण, दो निज यौवन!”

“नव स्वतंत्र भारत, हो जग-हित ज्योति जागरण,

नव प्रभात में स्वर्ण-स्नात हो भू का प्रांगण !

नव जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,

आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव मन में!

रक्त-सिक्त धरणी का हो दु:स्वप्न समापन,

शान्ति प्रीति सुख का भू-स्वर्ग उठे सुर मोहन!

भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की,

विकसित आज हुई सीमाएँ जग-जीवन की!

धन्य आज का स्वर्ण दिवस, नव लोक-जागरण!

नव संस्कृति आलोक करे, जन भारत वितरण!

नव-जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण,”

नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन !

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत

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