सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” जी हिंदी साहित्य और कविता क्षेत्र में विशेष स्थान रखते हैं| निराला जी छायावादी कविता के चार सतन्भों में से एक हैं| निराला जी की कविता और भाषा हिंदी पाठकों को सदैव आकर्षित करती है तथा लोगों को कभी चेतना तो कभी परिस्थिति से परिचय कराती हैं| निराला जी की कविता “गहन है यह अंधकारा” भारत देश के नागरिकों की कुछ कमियों को इंगित करती है| कवि को यह प्रतीत हो रहा है कि चारों दिशाओं में गहन अंधकार है और लोग बहुत ही स्वार्थी हो गए हैं, जिसके कारण अपना देश भारत पतन के गड्ढे में गिर रहा है …..
“….. गहन है यह अंधकारा…..”
गहन है यह अंधकारा,
स्वार्थ के अवगुंठनों से,
हुआ है लुंठन हमारा।
खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,
बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर,
इस गगन में नहीं दिनकर;
नही शशधर, नही तारा…|
कल्पना का ही अपार समुद्र यह,
गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह,
कुछ नही आता समझ में,
कहाँ है श्यामल किनारा।
प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की,
याद जिससे रहे वंचित गेह की,
खोजता फिरता न पाता हुआ;
मेरा हृदय हारा…।
सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”