Distance matter - मोहन अबोध

Distance matters – मोहन अबोध

Distance matters – मोहन अबोध

मेरे शब्दों के दुनिया के दोस्त नमस्कार, कैसे हैं आप सब? आशा करता हूँ प्रसन्नतापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे होंगे…यह लेख बहुत दिनों के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ । इस लेख में अंतस की अभिव्यक्ति का साझाकरण है…..वह भी आप से !
यूँ तो हर बार मैंने कुछ न कुछ आपसे अपना अनुभव साझा किया है, पर आज का विषय थोडा अलग है। जिसमे दर्द या चीख नहीं बल्कि संवेदना और स्मृतियाँ हैं|


मेरे शब्दों की दुनिया के दोस्त …… शायद आपने भी, जीवन में कभी न कभी पढ़ाई या जीविका के उद्देश्य से अपना घर कुछ दिन, कुछ माह या कुछ वर्षों के लिए जरूर छोड़ा होगा और महसूस किया होगा । उस आँगन से बिछड़ने का दर्द जिसमे घुटनों के बल सरक – सरक कर चलना सीखा था|


आज ….. या यों कहें बीते तीन – चार माह से मेरी भी स्थिति यही है …..
मैं अपने घर और परिवार से दूर हूँ और बहुत ज्यादा दूर हूँ | दूरी तो बता नहीं सकता पर इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि मैं उत्तरी हिन्दुस्तान को छोड़कर दक्षिणी हिन्दुतान में पहुँच गया हूँ |


मैंने अंग्रेजी का यह विचार यानीं कि कोट कई बार सुना है और सुनता चला आया हूँ…. “Distance doesn’t matter.” पर सच बताऊँ मुझे आज तक भरोसा नही हो रहा कि मैंने इस विचार पर कैसे भरोसा कर कर लिया था?


शायद कारण “निकटता” ही थी क्योंकि इसके पहले भी अध्ययन के सिलसिले में बहुत दिनों या यों कहें बहुत वर्षों तक घर से बाहर रहा। सफ़र जूनियर इंजीनियर से लेकर इंजीनियर तक पूरा किया, फिरभी मैं घर से महज १०० किमी० से ज्यादा दूर नही रहा। अर्थात दूरी ज्यादा न थी!


तो साहिबान…. मेरा मत यह है “Distance doesn’t matter.” के बारे में “Distance matters.” और कुछ ज्यादा ही मैटर करती है। यह अलग बात है “दूरी” आपसी “स्नेह को कम नही करती”  पर कष्ट को बढ़ा ज़रूर देती है।


येन केन प्रकारेण मैं यही कहना चाहता हूँ कि “दूरी महत्व रखती है “…….


तो साहिबान अब आप को ले चल रहा हूँ उस गलियारे में जहाँ पर एक खिड़की है जिसके कपाट तब खुलते हैं जब आप जैसा कोई पाठक …मेरे अंतर्मन के झरोखों को निहारना और महसूस करना चाहता है…..।


मेरे अंतस में करुणा की ऐसी पुहार छूटती है जिससे मैं द्रवित हो जाता हूँ …. मन कहता है कि जी भर के रो लूँ मगर रो नही सकता क्योंकि लड़का हूँ न साब…।


जीवन ने मुझे उस मोड़ पर लाकर खड़ा किया है जहाँ मैं खुद से शिकायत करूँ तो संघर्ष बुरा मान जाएगा और परिस्थिति से शिकायत करूँ तो ख़ुदा बुरा मान जाएगा।


डिस्टेंस ने मेरे बेहतरीन व मजबूत रिश्तों को कमजोर कर दिया है और अब बारी है समय की जो बुरे वक़्त में इन रिश्तों का अस्तित्व मिटा देगा।


फिलहाल नौकरी कर रहा हूँ और एमएनसी अर्थात मल्टीनेशनल कम्पनी में जो कहने को को सुविधाजनक मानी जाती है। पर चन्द सिक्कों का लालच देकर कर्मचारियों के ख़ून और पसीने के संघर्षों के प्रतिफल के आधार पर अपनी बड़ी-बड़ी ऑफिस सुसज्जित करती हैं। मुख्य बात यह है कि बिकाऊ पत्रकारों के दम पर इन कंपनियों का महिमामंडन टीवी न्यूज़ चैनलों से लेकर प्रिंट मीडिया तक होता है और शायद भविष्य में होता भी रहे।


फ़िलहाल नौकरी करनी है, जीविका चलानी है और इन्ही दूरियों में ज़िन्दगी के स्वर्णिम लम्हों की आहूति देनी है।


नोट आपको सबको एक सलाह – “Distance doesn’t matter.” के झांसे में न आएं क्योंकि “Distance matters.”
शुभ जीवन और सार्थक संघर्ष के शुभकामनाओं के साथ आपका मोहन अबोध।


इति
✍️मोहन अबोध

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *