जयशंकर प्रसाद

भारत महिमा – जयशंकर प्रसाद

हिंदी भाषा में प्रयोगवादी कविता, खड़ीं भाषा में लिखने का जो काम श्री जयशंकर प्रसाद ने किया है वह अद्वितीय है | इस कविता में जयशंकर प्रसाद जी अपने राष्ट्र अर्थात भारत की महिमा का वर्णन कर रहे हैं| प्रसाद जी कहते हैं की मात्र भारत एक ऐसा देश है जिसके पर्वत ( हिमालय ) पर सर्वप्रथम सूर्य की किरने पड़ती हैं जो कि उपहार सवरूप होती हैं | प्रसाद जी का मानना है की सर्वप्रथम भारत के नागरिक, भारतवासी जागते है उसके उपरांत सारा संसार जगने लगता है अर्थात भारत ही संसार का पथ प्रदर्सक हैं|

प्रसाद जी की कविता “भारत महिमा” आप लोगों के सामने प्रस्तुत हैं……

”…………. भारत महिमा ………….”

“हिमालय-के-आँगन-में-उसे, प्रथम-किरणों-का-दे-उपहार”
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार,

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक,
व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक|

विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत,
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत|

बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत,
अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत|

सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास,
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास|

सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह,
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह|

धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद,
हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद|

विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम,
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम|

यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि,
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि|

किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं,
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं|

जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर,
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर|

चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न,
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न|

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव,
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव|

वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान,
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान|

जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष,
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष|

जय शंकर प्रसाद

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