सूरदास – के प्रमुख पद
कविवर सूरदास के प्रमुख पद आपको इस इस ब्लॉग में पढ़ने को मिलेगा |
तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।
छूटि गये कैसे जन जीवै, ज्यौं प्रानी बिनु प्रान॥
जैसे नाद-मगन बन सारंग, बधै बधिक तनु बान।
ज्यौं चितवै ससि ओर चकोरी, देखत हीं सुख मान॥
जैसे कमल होत परिफुल्लत, देखत प्रियतम भान।
दूरदास, प्रभु हरिगुन त्योंही सुनियत नितप्रति कान॥
अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं, तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥
प्रभु, मेरे औगुन न विचारौ।
धरि जिय लाज सरन आये की रबि-सुत-त्रास निबारौ॥
जो गिरिपति मसि धोरि उदधि में लै सुरतरू निज हाथ।
ममकृत दोष लिखे बसुधा भरि तऊ नहीं मिति नाथ॥
कपटी कुटिल कुचालि कुदरसन, अपराधी, मतिहीन।
तुमहिं समान और नहिं दूजो जाहिं भजौं ह्वै दीन॥
जोग जग्य जप तप नहिं कीण्हौं, बेद बिमल नहिं भाख्यौं।
अति रस लुब्ध स्वान जूठनि ज्यों अनतै ही मन राख्यौ॥
जिहिं जिहिं जोनि फिरौं संकट बस, तिहिं तिहिं यहै कमायो।
काम क्रोध मद लोभ ग्रसित है विषै परम विष खायो॥
अखिल अनंत दयालु दयानिधि अघमोचन सुखरासि।
भजन प्रताप नाहिंने जान्यौं, बंध्यौ काल की फांसि॥
तुम सर्वग्य सबै बिधि समरथ, असरन सरन मुरारि।
मोह समुद्र सूर बूड़त है, लीजै भुजा पसारि॥
……सूरदास