सूरज निकलना चाहिए- गोपालदास “नीरज”
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए– कविता – हिन्दी कविता के महान कवि श्री गोपालदास “नीरज” जी ने लिखा है | इस कविता में नीरज जी सामाजिक परिवर्तन की आकांक्षा करते हुए आक्रोषित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं|
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए,
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए|
रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह,
अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए|
अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा,
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए|
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया,
जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए|
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो,
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए|
दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ,
तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए|
——– गोपालदास “नीरज”