पुष्प की अभिलाषा – माखनलाल चतुर्वेदी
बचपन में अनेक कविताओं का अध्ययन और वाचन किया मैंने परन्तु श्री माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता “पुष्प की अभिलाषा” मेरी सबसे प्रिये कविताओं में से एक रही है |
मुझे आज भी याद है जब यह कविता हमारे गुरू जी ने पहली बार विद्यालय में पढ़ाया था | प्रत्येक बच्चा सम्मोहित हो गया था कविता के एक एक शब्द से | हम सभी को पहली बार यह अहसास हुआ था कि कविता के माध्यम से पुष्प भी बात करते हैं और उनकी भी कुछ अभिलाषाएं होती हैं |
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
माखनलाल चतुर्वेदी