भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की- जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
जगन्नाथदास ’रत्नाकर’ जी ने उद्धव शतक में गोपियों को ज्ञान की बातें बताने की लाखों कोशिश की परन्तु गोपियों के तर्क के आगे उद्धव जी की एक भी न चली | यह प्रसंघ तब का है जब उद्धव जी नंदगाँव में पहुचते हैं और गोपियों को यह पता चलता है कि श्रीकृष्ण जी ने हम गोपियों के लिए कुछ सन्देश भेजा है|
उस दृश्य का कविवर जगन्नाथदास ’रत्नाकर’ जी ने बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है|
…. भेजे मनभावन के……..
भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की,
सुधि ब्रज-गाँवनि मैं पावन जबै लगीं ।
कहै रतनाकर गुवालिनि की झौरि-झौरि,
दौरि-दौरि नन्द पौरि आवन तबै लगीं ॥
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै,
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छवै लगीं ।
हमकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा,
हमकौं लिख्यौ है कहा कहन सबैं लगीं ॥
जगन्नाथदास ’रत्नाकर’