बाकी बच गया अण्डा

बाकी बच गया अण्डा – नागार्जुन

बाबा नागार्जुन की कविता – बाकी बच गया अण्डा, उनके द्वारा लिखी गविताओं में से सबसे प्रसंघिक कविता हैं | यह कविता बाबा नागर्जुन ने देश आजाद होने के लगभग तीन वर्ष अर्थात सन १९५० में लिखी थी | अगर इस कविता के भावार्थ की बात की जाये तो बाबा ने इस कविता में पांच प्रमुख व्यक्तियों के ओर इशारा किया है| पहले व्यक्ति की बात करें तो कवि ने महात्मा गाँधी के बारे में बात की है क्योंकि गाँधी जी की मृत्यु गोली लगने के कारण हुई थी| दुसरे व्यक्ति की बात करें तो कवि नेता सुभास चन्द्र बोष के बारे में बात करता है क्योंकि नेता जी विमान दुर्घटना मारे गए थे या यों कहें देश निकला मिला था | तीसरे व्यक्ति का आशय मुहम्मद अली जिन्ना से है | चौथे व्यक्ति का इशारा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जी से है| पांचवे व्यक्ति जो भारत का तिरंगा लहराते हुये जेल चले थे, गये उनका नाम जय प्रकाश नारायण हैं |

आशा करता हूँ इस कविता का संक्षिप्त भावार्थ आपको पसंद आया होगा …

“…बाकी बच गया अण्डा…”

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूँखार
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गए चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा
पुलिस पकड़कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा

नागार्जुन

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