फिरा कर्ण, त्यों 'साधु-साधु'
कह उठे सकल नर-नारी,
राजवंश के नेताओं पर
पड़ी विपद् अति भारी।
द्रोण, भीष्म, अर्जुन, सब फीके,
सब हो रहे उदास,
एक सुयोधन बढ़ा,
बोलते हुए, 'वीर! शाबाश !'
द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को
फिर उसने ललकारा,
अर्जुन को चुप ही रहने का
गुरु ने किया इशारा।
कृपाचार्य ने कहा- 'सुनो
हे वीर युवक अनजान'
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की
अर्जुन है संतान।
कृपाचार्य ने कहा- 'सुनो
हे वीर युवक अनजान'
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की
अर्जुन है संतान।
'क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है,
यों ही नहीं लड़ेगा,
जिस-तिस से हाथापाई में
कैसे कूद पड़ेगा?
अर्जुन से लड़ना हो तो
मत गहो सभा में मौन,
नाम-धाम कुछ कहो,
ताओ कि तुम जाति हो कौन?'
'जाति! हाय री जाति !'
कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,
कुपित सूर्य की ओर देख
वह वीर क्रोध से बोला
'ऊपर सिर पर कनक-छत्र,
भीतर काले-के-काले,
शरमाते हैं नहीं जगत् में
जाति पूछनेवाले।
जाति पूछनेवाले।
सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे
पिता पार्थ के कौन?
साहस हो तो कहो,
ग्लानि से रह जाओ मत मौन।
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'मस्तक ऊँचा किये,
जाति का नाम लिये चलते हो,
पर, अधर्ममय शोषण के
बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से
थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,
छल से माँग लिया
करते हो अंगूठे का दान।